रविवार, 1 मई 2011


                                                           पिता क्या है ?

 मैं कवि बनके रवि पर लिख दूंगा, ये तो मेरी कीमत  है !
पर उन पिता पर क्या छंद लिखूंगा,जोकि मेरी हिम्मत है!!  
उन पिता के यशोगान को मेरी ये वाणी भोंटी है !
और लिखने को उनके कीर्तिमान को ये धरती भी छोटी है!!

 
 जिनकी अंगुली पकड़ के, मैंने जाना हर पगडण्डी को !
जिनकी शॉल के बूते ललकारा, मैंने भीषण ठंडी को !! जिनके अनुशासन से, हम वैभव के विस्तार हुए!
जिनकी आँखों के सपनो से, हम इस भांति साकार हुए !!

 

 जब से मैंने जग को जाना, वे ही तो परिचायक है!
वे ही सबल प्रेरक है, हीरो है,  मेरे नायक है!!

वे दूर हो तो भी लगता है- जैसे पास हो, यहीं-कहीं है!
पिता क्या है? ये उनसे पूछो जिनके सिर पे पिता नहीं है!!